गजल

ख़ाली- ख़ाली नगर ही लगता है
अजनबी हर बशर ही लगता है

जब घिरे हों उदासियों में तो
मुस्कुराना हुनर ही लगता है

आपके इंतज़ार में हमको
एक पल भी पहर ही लगता है

ऐसी बारिश से लग रहा है डर
गिर ना जाए ये घर ही लगता है

मुझसे मुँह फेर कर वो बैठे हैं
चुगलियों का असर ही लगता है

कपिल कुमार
बेल्जियम

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