गजल

ये दिले बेकरार बाक़ी है
ज़िन्दगी का खुमार बाक़ी है

वक्त ने ख़्वाब सारे तोड़ दिए
डूबी कश्ती , सवार बाक़ी है

में भी हारा नहीं हूँ ज़ख्मी हूँ
जंग भी आर – पार बाक़ी है

सारे दरबार खटखटा आए
सिर्फ़ तेरा दयार बाक़ी है

ज़ुल्म तुमने बहुत किए लेकिन
अब भी ये जां निसार बाक़ी है

कपिल कुमार
बेल्जियम

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