गिले – शिकवे हैं रुसवाई बहुत है
इसी कारण ही तन्हाई बहुत है
बनाने को मुकम्मल दर्द मुझ को
तेरी यादों की पुरवाई बहुत है
किसी से क्यूं भला रिश्ता बढ़ाऊं
मेरी तुझ से शनासाई बहुत है
ये माना झूट का पर्वत है ऊंचा
मगर सच में भी गहराई बहुत है
वही मेरा मुकद्दर है अगरचे
मेरा महबूब हरजाई बहुत है
हसीं क़ातिल न क्यों तुम को कहूं मैं
कि जां लेने को अंगड़ाई बहुत है
कपिल कुमार
बेल्जियम
शनासाई….. परिचय,जान पहचान