गजल

आँख में कुछ नमी- सी बाक़ी है
दिल में रस्साकशी- सी बाक़ी है

सूखे – सूखे से लब ये कहते हैं
अब भी इक तिश्नगी-सी बाक़ी है

ग़मज़दा होना देखिये उनका
लब पे क़ातिल हँसी- सी बाक़ी है

उनके आगे ज़ुबां नहीं खुलती
हममें ये ही कमी – सी बाक़ी है

नाप तो लूँ मैं आसमां तुझको
पैरों में कुछ ज़मीं- सी बाक़ी है

कपिल कुमार
बेल्जियम

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