कपिल कुमार द्वारा मशहूर प्रवासी शायर एवं लेखक तुफैल अहमद का व्यक्तिगत साक्षात्कार

[ ओमान में रहने वाले प्रवासी साहित्यकार तुफैल अहमद जी पेशे से इंजीनियर और दिल से शायर और लेखक हैं | तुफैल जी की शिक्षा-दीक्षा दिल्ली में हुई | आप जामिया यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (गोल्ड मेडलिस्ट) और एसपीए दिल्ली से मास्टर ऑफ़  इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करके ओमान में कार्यरत हैं | शायरी से प्यार स्कूल के दौरान से ही था जो धीरे-धीरे बढ़ता ही गया ,फलस्वरूप आज  तुफैल जी को एक प्रतिष्ठित शायर के रूप में हमारे बीच में हैं | भारत,ओमान ,दुबई और कुवैत आदि देशों में कई मुशायरों में मंच लूट चुके हैं | आपकी ग़ज़लों की दो म्यूजिकल एल्बम आ चुकी है और गज़लें विश्वभर के तमाम पत्र-पत्रिकाओं के छपती रहती है | आइये जानते इस मशहूर शायर के बारे में कुछ और अधिक |

कपिल कुमार : ओमान में आप कबसे हैं,और ओमान से हिंदुस्तान क्या ले सकता है ,मतलब संस्कृति के बारे में है।

तुफैल अहमद : मैं पिछले २५ वर्षों से ओमान में कार्यरत हूं। यहां की संस्कृति से हमें प्रेरणा मिलती है कि मिल जुल कर कैसे रहा जाता है। हम सिसायत में उलझनें के बजाए  अपने लक्ष्य की ओर कैसे अग्रसर रह सकते हैं। हम अनुशासित जीवन कैसे और कितनी आसानी से व्यतीत कर सकते हैं |

कपिल कुमार : हिंदुस्तान से वहाँ क्या आना बाकी है ,ओमान में ,जो हिंदुस्तान दे सकता है।

तुफैल अहमद : भारत में तो साहित्य का खज़ाना है। भारत और ओमान के रिश्ते बहुत गहरे हैं। यहां लाखो की संख्या में भारतिय रहते है। मगर भारतीय साहित्य अभी तक उस अनुपात में अरब जगत में नहीं पहुंच पाया है। भारतीय साहित्य का अरबी अनुवाद और अधिक होना चाहिए।

कपिल कुमार : आपने तो बहुत कुछ किया है वहाँ पर मिडिल ईस्ट में मुशायरे ,साहित्य के कार्यक्रम ,अभी आगे क्या कार्यक्रम हैं,क्या कुछ सोच रखा है

तुफैल अहमद : मैं जब २५ वर्ष पहले यहां आया तो उस समय यहां पर केवल बड़े मुशायरे या कवि सम्मेलन हुआ करता था। यहां के स्थनीय कवि उन बड़े मुशायरे या कवि सम्मेलन में जाते थे।  बड़े बड़े काविगन अपना रचना सुना कर चले जाते थे। स्थानीय लोग को सुनकर चले आते थे। उसके आगे बस शून्य ही सा था। स्थानीय लोगों के लिए साहित्य की गतिवधियां नाम मात्र ही थी। इस शून्य की रिक्ती पूर्ति के लिए हमने घरों में गोष्टी शुरु की। शुरु में बहुत के लोग थे । धीरे धीरे लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया । उसी कारवां का नाम है plg। जिससे आज देश विदेश से बहुत से कवि जुड़े हुए हैं।हमारी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़े हमारी एक ख्वाहिश है कि यह मुहिम जो हमने कवियों को जोड़ने की कोशिश की है जो हमने यह कोशिश की है कि जो ग्रास रूट लेवल के पोस्ट से उनको आगे बढ़ने का मौका मिले। और सिर्फ यहां पर नहीं हमारी कोशिश है कि हर देश में यह PLG की मुहिम पहुंचे ।

कपिल कुमार : आज के हालात में चीन की चाल के बारे में कुछ कहना चाहेंगे

तुफैल अहमद : मेरे विचार से हमें यह लड़ाई अपनी भूमि की रक्षा के अलावा दूसरे स्तरों पर भी लड़नी पड़ेगी। कूटनीतिक लड़ाई लरनी होगी। आर्थिक लड़ाई लड़नी होगी। भारत चीन का बहुत बड़ा बाज़ार हैं। अगर उन्हें आर्थिक मार पड़े गी तो वह अपनी सोच बदलने पर मजबूर हो जाए गा।

कपिल कुमार : उर्दू साहित्य में शागिर्द का बड़ा महत्त्व है ,इस जरुरत को चंद शब्दों में कहना हो तो आप क्या कहेंगे

तुफैल अहमद : न केवल साहित्य में बल्कि जीवन में भी हम अक्सर लोगों से सीखते हैं ,कुछ को आदर्श मानते हैं ,कुछ के बताये रास्ते पर चलते हैं | सीखना बहुत जरुरी है उसके लिए अच्छे उस्ताद की जरुरत होती है | हम हर समय हर जगह हर व्यक्ति से कुछ ना कुछ सीखते है। परंतु जब हम यह भूल करते हैं कि हम सोच लेते है कि हमें दूसरों से सीखने की आवश्यकता नहीं है, तो हमारा विकास रूक जाता है । मेरा यह मानना है कि ऐसी स्थिति में हम एक पलटू पर पहुंच जाते हैं। हमारे ऊपर जाने का स्कोप का अंत हो जाता हैं। इसलिए सीखने और सिखाने की बात हर जगह होना चाहिए |

कपिल कुमार : उर्दू के अलावा आप और कौन-कौन सी भाषा में लिखते हैं ?

तुफैल अहमद : उर्दू के साथ-साथ मै हिंदी और अंग्रेजी में भी लिखता रहता हूँ |

कपिल कुमार : तुफैल साहेब आखिरी सवाल हिंदी की गूंज जापान ,और उनकी संस्थापिका रमा शर्मा जी के बारे में कुछ कहना चाहेंगे |

तुफैल अहमद : रमा जी से मेरी मुलाकात अभी कुछ दिन पहले आपके मंच पर ही हुई थी और एक ही मुलाकात में मुझे पता चला की कि रामा जी के विचार बहुत ही उच्च कोटि के हैं। अपने देश से दूर होकर भी वह वह भारतीय संस्कृति का दीपक जलाए हुई हैं। हिंदी की गूंज जापान में रामा जी जैसे लोगों की वजह से ही सुनाई पड़ रही है। एक ऐसे देश में जहां पर हिंदी भाषी बहुत कम है वहां पर हिंदी की साहित्यिक पत्रिका निकालना हिंदी भाषा की और हिंदी साहित्य की बहुत बड़ी सेवा है। मेरी शुभकामनाएं रमा जी के साथ  कि देश के बाहर जो हिंदी के विस्तार की कोशिश कर रही है उसने उन्हें कामयाबी मिले।   अभी हमने सुना कह रमा जी की तबीयत ठीक नहीं है। तो मैं उनकी अच्छी सेहत के लिए दुआ करता हूं और आशा करता हूं कि वह जल्दी ठीक हो जाएंगी |

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