गजल

मंजिलों से जुदा हो गए
रास्ते जब खफा हो गए

नर्म हो कर झुके जब कभी
लोग सारे ख़ुदा हो गए

उनकी तारीफ़ की , और वो
जान ओ दिल से फ़िदा हो गए

रूबरू सच के हम जब हुए
झूठ सारे हवा हो गए

सोच में आज सय्याद है
कैसे पंछी रिहा हो गए

कपिल कुमार
बेल्जियम

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